शनिवार 27 दिसंबर 2025 - 12:57
इतेकाफ़ इंसान को ख़ुदा से जोड़ने का बेहतरीन अवसर हैं। मौलाना सैयद रज़ा हैदर ज़ैदी

हौज़ा / लखनऊ की शाही आसिफ़ी मस्जिद के इमाम ए जुमआ मौलाना सैयद रज़ा हैदर ज़ैदी ने पिछले दिन नमाज़-ए-जुमआ के ख़ुत्बों में नमाज़ियों को तक़वा-ए-इलाही की नसीहत करते हुए माह-ए-रजबुल-मुरज्जब की फ़ज़ीलत और अहमियत बयान की।

हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के अनुसार , मौलाना सैयद रज़ा हैदर ज़ैदी ने माह ए रजब की 13, 14 और 15 तारीख़ को इ‘तिकाफ़ की ताकीद करते हुए कहा कि इन दिनों में इतेकाफ़ की बड़ी फ़ज़ीलत बयान हुई है। उन्होंने कहा कि इतेकाफ़ एक इबादत है, ख़ुद को ख़ुदा से जोड़ने का बेहतरीन मौक़ा है यह पिकनिक या मोबाइल चलाने के लिए नहीं है। जब इंसान दुनिया से रिश्ता तोड़ता है, तभी अल्लाह से रिश्ता जुड़ता है।

उन्होंने मोमिनीन को इमाम अली नक़ी अलैहिस्सलाम के यौम-ए-विलादत की मुबारकबाद देते हुए कहा कि रिवायत में है “हमारे शिया हमारी ख़ुशी में ख़ुश होते हैं और हमारे ग़म में ग़मगीन। इसी वजह से अहले बैत अलैहिमुस्सलाम के ग़म के दिनों में मजालिस-ए-अज़ा और उनकी विलादत व ख़ुशी के दिनों में महफ़िलों का आयोजन कि जाती है।

उन्होंने कहा कि जिस तरह मरहूमीन के ईसाल-ए-सवाब के लिए मजलिसें होती हैं, उसी तरह महफ़िलें भी हो सकती हैं, क्योंकि मजलिस हो या महफ़िल दोनों का मक़सद एक ही होता है।

मौलाना सैयद रज़ा हैदर ज़ैदी ने इमाम अली नक़ी अलैहिस्सलाम की यह हदीस बयान की हसद नेकियों को मिटा देता है, तकब्बुर नफ़रत को खींच लाता है, और ख़ुद-पसंदी इल्म हासिल करने से रोकता है लोगों को हक़ीर समझने और जहालत की तरफ़ बुलाने वाली है। जबकि बुख़्ल (कंजूसी) बदतरीन अख़लाक़ में से है और लालच एक बुरी ख़सलत है।

उन्होंने कहा कि हसद से चाहे कोई जले या न जले, लेकिन इंसान ख़ुद अपनी शख़्सियत को जला लेता है। हसद करने वाला किसी की ख़ुशी बर्दाश्त नहीं कर पाता किसी को ओहदा, मंसब, इनाम या इज़्ज़त मिले तो वह जलने लगता है। नतीजतन वह अपने आमाल को ख़त्म और अपनी शख़्सियत को तबाह कर लेता है।

उन्होंने कहा कि जो इंसान दूसरों से अच्छे अख़लाक़, तवाज़ो और इन्किसारी के साथ पेश आता है, उसके दुश्मन हों भी तो कम होते हैं; जबकि जो घमंड और गुरूर से पेश आता है, उसके दुश्मन ज़्यादा होते हैं।

मौलाना ने कहा कि जो इंसान ख़ुद-पसंदी और “मैं” में मुब्तिला होता है, वह हलाक हो जाता है। यह “मैं” उसे इल्म हासिल करने से रोक देती है और उसे जहालत पर क़ायम रखती है।
उन्होंने यह भी कहा कि कंजूसी बदतरीन अख़लाक़ है।

कुछ लोग सलाम करने में भी कंजूसी करते हैं उम्मीद रखते हैं कि दूसरा उन्हें सलाम करे, ख़ुद पहल नहीं करते। हालाँकि सलाम का जवाब देना वाजिब है और सलाम करना मुस्तहब, लेकिन फ़ज़ीलत सलाम करने वाले को मिलती है।

अंत में उन्होंने अस्तित्व-ए-ख़ुदा पर हालिया मुनाज़रे की तरफ़ इशारा करते हुए जबर व तफ़वीज़” और “हुस्न व क़ुब्ह-ए-अक़्ली” के विषय पर विस्तार से चर्चा की।

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